IAS officer who brought the government machinery to its knees : IAS आफिसर की कहानी जिसने सरकारी तंत्र को घुटनों पर लाया…..रिंकू सिंह राही, जो 15 साल पहले मुजफ्फरनगर में जिला समाज कल्याण अधिकारी के रूप में कार्यरत थे, ने शिक्षा माफिया के खिलाफ 100 करोड़ का घोटाला उजागर किया था। इसके परिणामस्वरूप उन पर जानलेवा हमला हुआ, जिसमें उन्हें सात गोलियां मारी गईं। हालांकि, वह चमत्कारिक रूप से बच गए, लेकिन इस हमले ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया। उन्होंने इसके बावजूद हार नहीं मानी और आईएएस बनने का संकल्प लिया। 2022 में सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद उन्हें मुजफ्फरनगर में प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। रिंकू अब जॉइंट मजिस्ट्रेट के तौर पर जिले में सेवा देंगे।
सात गोलियाँ लगने के बाद भी नहीं मानी हार …..
2009 में उन पर हुआ हमला बहुत गंभीर था, जिसमें एक गोली उनके चेहरे पर लगी और उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने शिक्षा माफिया के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी। जब उन्हें सूचना प्राप्त नहीं हुई, तो उन्होंने लखनऊ आकर निदेशालय के बाहर अनशन किया। पुलिस ने उन्हें जबरन उठाकर मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भर्ती कर दिया। अब, 15 साल बाद, रिंकू सिंह राही ने अपने पुराने जिले में लौटकर एक नई शुरुआत की है, जहाँ वे अपनी क्षमता और समर्पण से समाज के लिए योगदान देने के लिए तैयार हैं।
शिक्षा माफिया के खिलाफ 100 करोड़ का घोटाला किया था उजागर
अलीगढ़ के निवासी रिंकू सिंह राही ने यूपीएससी 2004 की परीक्षा पास की थी और 2008 में मुजफ्फरनगर में जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर नियुक्त हुए। शुरुआत में उन्हें वित्तीय अधिकार नहीं दिए गए थे। जब वे ट्रेनिंग के दौरान ट्रेजरी गए, तो वहां उन्होंने स्कॉलरशिप और फीस प्रतिपूर्ति के नाम पर विभाग में चल रहे करोड़ों के घोटाले का खुलासा किया।
उन्होंने करीब 100 करोड़ के गबन के ठोस सबूत जुटाए। जांच के दौरान, कई बैंकों में जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम पर खोले गए फर्जी खातों का पता चला, जहां शासन से मिलने वाले करोड़ों रुपए की स्कॉलरशिप और शुल्क प्रतिपूर्ति के चेक जमा कर भुनाए जा रहे थे। रिंकू ने इसकी शिकायत तत्कालीन सीडीओ सियाराम चौधरी से की, लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस घोटाले की गहराई में जाने के कारण रिंकू माफिया के निशाने पर आ गए। उनके साहसिक प्रयासों ने उन्हें एक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यकर्ता बना दिया, लेकिन इसके लिए उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
बैडमिंटन खेलते समय हुआ था हमला
2009 में रिंकू सिंह राही पर हमला हुआ था, जब वे मुजफ्फरनगर के पुराने प्लानिंग दफ्तर की सरकारी आवासीय कॉलोनी में रह रहे थे। 26 मार्च को सुबह सात बजे, वे एक सहकर्मी के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे, तभी दो हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। रिंकू को सात गोलियां लगीं और उनका जबड़ा भी गंभीर रूप से घायल हो गया। उन्हें तुरंत मेरठ के हायर सेंटर ले जाया गया, जहां वे लगभग एक महीने तक सुभारती मेडिकल कॉलेज में भर्ती रहे। कई ऑपरेशनों के बाद वे स्वस्थ होकर लौटे।
इस कातिलाना हमले के आरोप में पुलिस ने एक नेता समेत आठ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। फरवरी 2021 में मुजफ्फरनगर की विशेष एससी-एसटी कोर्ट ने सुनवाई पूरी की और चार आरोपियों को 10-10 साल की कैद की सजा सुनाई। बाकी चार आरोपियों को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया गया।
पोस्टिंग के दौरान चार बार चार्जशीट का किया सामना
रिंकू ने अपनी सेवाओं के दौरान तीन जिलों में पोस्टिंग के दौरान चार बार चार्जशीट का सामना किया। 2015-16 में, श्रावस्ती में जिला समाज कल्याण अधिकारी के रूप में काम करते समय, उन्हें 25 हजार रुपये वार्षिक सरकारी गाड़ी भत्ता मिलने की व्यवस्था थी, जिसे उन्होंने नहीं लिया। अधिकारियों की बैठक में उनसे कहा गया कि वे इस राशि को किसी भी मद में खर्च करें, लेकिन उन्होंने खर्च नहीं किया। इसके बावजूद, उन्हें गाड़ी भत्ते के 25 हजार रुपये दूसरे कार्यों पर खर्च करने के आरोप में चार्जशीट थमाई गई।
ललितपुर में अपनी पोस्टिंग के दौरान, 2018 में उन्हें विभाग के स्कूल में शिक्षकों के शोषण के आरोप में आरोप पत्र दिया गया। हापुड़ में राजकीय IAS-PCS कोचिंग सेंटर में मेस संचालन के ठेकेदार की शिकायत करने पर उन पर फर्जी आरोप लगाने की कोशिश की गई। इन्हीं मामलों को लेकर उन्हें अलग-अलग फर्जी शिकायतों के माध्यम से दो और चार्जशीट दी गई। रिंकू सिंह राही पर 2009 में मुजफ्फरनगर में जानलेवा हमला हुआ था, जिसके बाद उन्होंने घोटाले की जानकारी हासिल करने के लिए आरटीआई के तहत विभाग से कुछ सूचनाएं मांगी। एक साल गुजरने के बावजूद जब उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली, तो 26 मार्च 2012 को उन्होंने लखनऊ के निदेशालय के बाहर अनशन शुरू कर दिया। इस दौरान पुलिस ने उन्हें वहां से उठाकर लखनऊ के मानसिक अस्पताल भेज दिया। रिंकू ने बताया कि एक दिन बाद उन्हें अलीगढ़ के सरकारी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया।
सौतेले रवैये के बावजूद प्रेरणा है रिंकू सिंह की कहानी
शासन और प्रशासन के सौतेले रवैये के बावजूद रिंकू ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने इन सभी चुनौतियों को एक अवसर के रूप में देखा और संघर्ष जारी रखा। उन्होंने दो साल पहले यूपीएससी परीक्षा में 921वीं रैंक हासिल की। रिंकू दलित समुदाय से आते हैं, और उनकी संघर्ष की कहानी दूसरों के लिए प्रेरणा है। 2023 बैच के यूपीएससी अधिकारी के रूप में, उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। अब उन्हें तीन महीने के लिए जनपद प्रशिक्षण के लिए उसी मुजफ्फरनगर भेजने का आदेश दिया गया है, जहां से उनके संघर्ष की कहानी शुरू हुई थी।