In India, Now Mothers Took Up Responsibility To Save Them:
मंगला प्रधान उस सुबह को कभी नहीं भूल पाएंगी, जिस दिन उन्होंने अपने एक साल के बेटे को खो दिया था. यह घटना 16 साल पहले सुंदरवन में घटी थी.
यह भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में 100 द्वीपों का एक विशाल डेल्टा है.
तब मंगला प्रधान के बेटे अजीत ने केवल चलना शुरू ही किया था. वो जीवन से भरा हुआ था. वह चंचल, बेचैन और दुनिया के बारे में जानने को उत्सुक था.
उस सुबह, बाकी लोगों की तरह, उनका परिवार दैनिक जीवन के कामकाज में व्यस्त था. मंगला ने अजीत को नाश्ता कराया था. इसके बाद वो खाना बनाने के लिए रसोई में गई, तो अजीत को अपने साथ ले गई थी.
उनके पति सब्ज़ी ख़रीदने बाहर गए थे. उनकी बीमार सास दूसरे कमरे में आराम कर रही थीं. इस बीच अजीत कहीं चला गया.
मंगला ने अजीत को आवाज़ लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं आया. कुछ मिनट बाद मंगला को घबराहट होने लगी.
उन्होंने चिल्लाकर पूछना शुरू किया, “मेरा बेटा कहां है? क्या किसी ने मेरे बेटे को देखा?”
पड़ोसी उनकी मदद के लिए दौड़ पड़े. मगर, कुछ ही देर बाद मंगला के जीजा ने अजीत का छोटा सा शरीर घर के बाहर आंगन के पास पोखर में तैरता हुआ देखा.
अजीत भटककर पोखर में गिर गया था. उसकी एक पल की नादानी परिवार के लिए एक अकल्पनीय त्रासदी बन गई.
आज, मंगला उस इलाक़े की उन 16 मांओं में शामिल हैं, जो एक ग़ैर-लाभकारी संस्था द्वारा स्थापित दो अस्थाई पालनाघरों में पैदल या साइकिल से जाती हैं.
ये संस्था वहां लगभग 40 बच्चों की देखभाल करती हैं. इन पालनाघरों में बच्चों को भोजन दिया जाता है और मुफ़्त शिक्षा दी जाती है. ये वो बच्चे होते हैं, जिन्हें उनके माता-पिता काम पर जाते समय वहीं छोड़ जाते हैं.
इन पालनाघरों को चलाने वाली संस्था का नाम चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट. संस्था के सुजॉय रॉय कहते हैं, “ये माताएं उन बच्चों की रक्षक हैं, जो उनके अपने नहीं हैं.”
ये वेटलैंड्स की ज़िंदगी है.
वेटलैंड्स एक ऐसी जगह होती है जहां की ज़मीन मौसमी या स्थायी रूप से पानी से ढकी रहती है. बंगाल में स्थित सुंदरवन भारत का एक बड़ा वेटलैंड है. इस क्षेत्र में अनगिनत बच्चे डूबते रहते हैं. यह इलाक़ा तालाब और नदियों से भरा पड़ा है. यहां हर घर के सामने एक तालाब है.
तालाबों का इस्तेमाल नहाने, कपड़े धोने और पीने के लिए किया जाता है. इस क्षेत्र में मेडिकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन द जॉर्ज इंस्टीट्यूट और सीआईएनआई ने साल 2020 में एक सर्वे किया था.
इसमें यह बात सामने आई थी कि सुंदरवन इलाक़े में हर दिन लगभग तीन बच्चे डूब जाते हैं. इनकी उम्र एक से नौ साल के बीच होती है.
डूबने की ये घटनाएं जुलाई में सुबह दस बजे से दोपहर दो बजे के दौरान चरम पर थीं. यह वो समय था, जब मानसून की शुरुआत होती थी. उस समय अधिकांश बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं होता था.
क्योंकि, बच्चों की देखभाल करने वाले लोग घरेलू कामकाज में जुटे होते हैं.
डूबने वाले बच्चों में लगभग 65 फ़ीसदी अपने घर के 50 मीटर के दायरे में इसका शिकार हो गए थे. इनमें से केवल 6 फ़ीसदी ऐसे थे, जिन्हें किसी प्रशिक्षित लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर से इलाज मिल पाया था.